Sunday, June 14, 2020

Suicide - आजकल की युवा पीढ़ी की एक दर्दनाक तस्वीर


परेशानियां किसको नहीं होती? सबकी अपनी अपनी मुश्किलें और दिक्कतें है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि कोई आत्महत्या कर ले। 
आज की युवा पीढ़ी शारीरिक तौर पर Six Pack Abs बनाना तो जानती है लेकिन मानसिक तौर पर इतनी कमजोर है कि कोई अगर जरा सी बात भी बोल दे तो ये अपना मानसिक संतुलन खो देते है और आत्महत्या जैसा घिनौना पाप कर बैठते है। अगर कोई बात इनको गलती से भी बुरी लग गई तो ये गोली तक चला सकते है। 

किसी की नौकरी नहीं लग रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी के माता पिता अब इस दुनिया में नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की शादी नहीं हो रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का काम धंधा नहीं चल रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई किसी Subject में या पेपर में फेल हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी लड़के ने किसी लड़की का शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी लड़की ने किसी लड़के का प्रेम का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

अगर किसी के घर लड़की पैदा हुई है और वो बात उसके घरवालों को पसंद नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का बच्चा अपंग है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई बीमार है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी को लोन नहीं मिल रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी को English बोलनी नहीं आती, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की अपने पड़ोसी से लड़ाई हो गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की अपने रिश्तेदारों से नहीं बनती, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का sales का target पूरा नहीं हो रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बीवी या बच्चा मर गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई विधवा हो गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई बोना है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई हीजडा है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई अनाथ हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई लंगड़ा, लूला, बहरा, गूंगा, अंधा अपाहिज है, तो क्या वो Suicide कर ले।

बॉस ने डांट दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया और वो समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच पाया, प्लेन छूट गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की रेल की टिकट बुक नहीं हो रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई social media पर लाइक या शेयर या कॉमेंट नही कर रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई किसी को समझ नही पा रहा या उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की ज़मीन किसी ने हड़प ली, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बीवी दूसरे के साथ भाग गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का तलाक हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी के पति का किसी दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई मां नहीं बन सकती, बांझ है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की height कम है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई मर्दाना कमजोरी के कारण बाप नहीं बन सकता, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का टेंडर पास नहीं हो रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का पति शराब पीकर घर आता है और मार पिटाई करता है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बॉडी नहीं बन पा रही है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई रंग का काला है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई कम उम्र में ही गंजा हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई पतला नहीं हो पा रहा है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई इलेक्शन हार गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

इत्यादि, इत्यादि....

इस लेख से मेरा मतलब उस युवा पीढ़ी को समझाने से है, जो अपना धैर्य (Patience) खो चुके है। कई बार परिस्थितियां हमारे हक में नहीं होती और हमको उनसे समझौता करना पड़ता है पर आज की पीढ़ी वो समझौता करने को बिल्कुल तैयार नहीं है। इन लोगों में बहुत ज्यादा गुस्सा (anger) भरा हुआ है। अगर इनकी बात नहीं मानी जाए तो ये भड़क जाते है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बच्चे ने किसी चीज की फरमाइश या ज़िद करी और वो उसको नहीं मिली, तो वो गुस्से में कुछ भी कर सकता है। 

इत्र से कपड़ों को महकाना कोई बड़ी बात नहीं,
मज़ा तब है जब खुशबू आपके किरदार से आए..

मेरा सभी मित्रों से आग्रह है कि स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए। 

जैसा कि मैंने बताया कि आज की युवा पीढ़ी, जो थोड़ी मेहनत तो करना जानती है, पर उनमें धैर्य बिल्कुल भी नहीं है और उनमें बहुत ज्यादा गुस्सा भरा हुआ है। इसको ऐसे समझने की कोशिश करते है। एक शक्स ने किराए पर एक रेस्टोरेंट खोला। इसके लिए उसने manager, वेटर्स, रिसेप्शनिस्ट, chefs, दरबान भी रखे। फल सब्जियां सब कुछ ताज़ा, अच्छे तेल और देसी घी के पकवान, Entry करने पर Free juice लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे। तनख्वाह भी सबको देनी है पर पैसा नहीं है। बैंक का लोन भी चुकाना है। इससे वो शक्स डिप्रेशन में आ गया। भूख प्यास नहीं लगती, नींद भी नहीं आती। धीरे धीरे उसने अपना गुस्सा अपने बीवी बच्चो पर उतारना शुरू कर दिया पर उसे चैन नहीं मिला। रेस्तरां का किराए भी भरना था पर काम नहीं चल रहा। ग्राहक आ नहीं रहे तो इसमें बेचारे cook का क्या दोष। उसने गाली गलोच करके गुस्से में cook को निकाल दिया। मालिक सिर्फ नौकरी से ही निकाल सकता है और कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उसका ऐसा बर्ताव देखकर सबने अपनी नौकरी छोड़ दी और वो डिप्रेशन में आ गया। आज के समय में अगर बच्चों पर एक सेकंड के लिए भी खरोंच आ जाए या घर के किसी भी सदस्य को कोई छोटी सी भी दिक्कत होती है तो दिल दहल जाता है। उसने अपने परिवार की परवाह किए बिना आत्महत्या कर ली जिसका बहुत बुरा परिणाम उसके रोते बिलखते माता पिता और बीवी बच्चो को जीवन भर भुगतना पड़ा।

चार कदम चलने पर ही सांस फूलने वाली आज की युवा पीड़ी नशे की आदि हो चुकी है और दूसरों से अपनी तुलना करती है। ये बहुत बुरी बात है। उधार के पैसों से महंगी शराब पीकर उल्टी करने में कोई समझदारी नहीं है। रिश्तेदारों या पड़ोसियों को नीचा दिखाने के लिए लोन पर ली गई गाड़ी बहुत ज्यादा महंगी पड़ सकती है। 

ससुर या जेठ देवर के साथ शराब पीने वाली आज की युवा पीढ़ी किसी का भी सम्मान या आदर नहीं करती है। ये भी बहुत बुरी बात है। उनको अपनी पढ़ाई, अपनी अमीरी, अपने रूतबे, अपनी Power, अपनी Position, अपनी झूठी शान और शौकत का बहुत गुमान है। जो पढ़ा लिखा बेवकूफ इंसान अपने बड़े भाई या बाप की उम्र के मुलाजिम को गंदी गाली दे सकता है, वो किसी भी हद तक गिर सकता है। घमंडी कोयल की कहानी सुनी होगी आपने।

एक बस मैं ही समझदार हूं, बाकी सब नादान
इस भ्रम में घूम रहा है, आजकल हर इंसान

हर किसी से बदतमीजी से बात करने वाली आजकल की युवा पीढ़ी किसी की भी मदद नहीं करती है या करना ही नहीं चाहती है। ये बहुत बुरी बात है। इन लोगों को सिर्फ अपना फायदा निकालना आता है। ढोंग, दिखावा करना इनको बहुत अच्छा लगता है। अगर सामने वाले से कुछ फायदा हो रहा हो तो ठीक है वरना ये उनका फोन तक भी उठाना पसंद नहीं करते। मेसेज पर reply करना तो बहुत दूर की बात है। ये भी हो सकता है कि ये सब उनको अपने मां बाप से विरासत में मिला हो या फिर समय को देखते हुए परिस्थितियां अनुकूल ना हो। ये लोग "मैं" (EGO) में जीना ज्यादा पसंद करते है।

सुख मेरा कम्बख्त कांच का था..
ना जाने कितनों को चुभ गया..

बर्गर पिज्जा खाने वाली आज की युवा पीढ़ी हर किसी को घृणा और इर्ष्या की नजरों से देखती है। ये बहुत बुरी बात है। इन लोगो को ये बात बहुत चुभती है कि सामने वाला खुश कैसे है। उनसे दूसरों कि खुशी बर्दाश्त नहीं होती। एक जलन नाम की गंदगी उनके अंदर हमेशा भरी रहती है। इनको दूसरों की चुगली करने में बहुत मज़ा आता है। कोई इनकी झूठी तारीफ करें तो इनको बहुत अच्छा लगता है और अगर सामने वाले की थोड़ी सी भी बुराई हो जाए तब तो मज़ा ही कुछ और है।

मेरे चाचा MLA है, मेरे पिताजी के पास बहुत ज़मीन है, मेरी साली high court में जज है, मेरे फूफा MP है, मेरा मौसा Police में है, मेरी बुआ यहां की president है, मेरे मामा IAS है। ये सब बकवास भी सुनी होगी आपने।

जो मज़ा अपनी पहचान बनाने में हैं..
वो किसी की परछाई बनने में नहीं हैं..

आज की युवा पीढ़ी को गंदे और अश्लील वीडियो देखना अच्छा लगता है। अपने आप को संतुष्ट करने के लिए ये लोग कैसे कैसे हथकंडे अपनाते है। पूजा पाठ से तो ये लोग कोसो दूर है। डिस्को, पब, बार में जाना, ये अपनी शान समझते है। झूठा ढोंग और दिखावा करना इनकी आदत बन चुकी है। गाली गलौज, नशा करने में और दूसरों को नीचा दिखाने में आज की युवा पीढ़ी सबसे आगे है।

नौकरी या प्रोमोशन के लिए बॉस के साथ मुंह काला करने वाली युवा पीढ़ी अपने खर्चों पर बिल्कुल नियंत्रण नहीं रखती है। सस्ते कपड़े, सस्ते जूते पहनने में इनको बहुत शर्म आती है। महंगे होटलों में खाना नहीं खाएंगे तो ये लोग शायद बीमार पड़ जाएंगे। उच्च स्तर का रहन सहन नहीं दिखाएंगे तो शायद बदनाम हो जाएंगे।

आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया

दूसरों की बहन बेटियों को बहुत ज्यादा गंदी नजरों से देखने वाली युवा पीढ़ी चोरी चकारी, लूटमार, चेन, पर्स, मोबाइल छीनने में भी पीछे नहीं है। झूठा स्टेटस दिखाने में इनको बहुत मज़ा आता है। अपनी औकात से ज्यादा बड़े मकान में रहना समझदारी नहीं है। अगर किराए नही दे सकते तो फिर कोई सस्ती सी जगह ढूंढ लीजिए ना, लेकिन नहीं, बेइज्जती हो जाएगी।

रोटी पर घी और नाम के साथ जी लगाने से स्वाद और इज्जत दोनों बढ़ जाते हैं।

ये बात आजकल की युवा पीढ़ी, जो मां बहन की गाली देना बड़ा पुण्य का काम समझती है, उनको ये बात समझ में कहां से आएगी। कोई बड़ा हो या छोटा, इनको तो हर किसी से तू, तबाड, तुम बोलने में ही आनंद आता है। आप बोलने में इनकी इज्जत जो कम हो जाती है।

क्रेडिट कार्ड को ही अपना सब कुछ मान लेने वाली आजकल की युवा पीढ़ी को महंगे शौक रखना बहुत अच्छा लगता है। बड़ी गाड़ी के लिए ड्राइवर भी रखेंगे। खाना बनाने के लिए Chef भी होना जरूरी है। खुद का काम करना इनके लिए Mount Everest पर चढ़ने जैसा है। बगीचे के लिए माली का भी होना बहुत ज़रूरी है जो आते जाते सलाम भी ठोकेगा ताकि मेहमानों को लगे कि क्या ठाठ बाट है। पश्चिमी सभ्यता के ये गुलाम लोग हाथी खरीद तो लेते है पर कमबख्त पाल नहीं पाते और अंत में आत्महत्या कर लेते है।

क्या हो गया अगर महंगा फोन नहीं है तो
क्या हो गया अगर गाड़ी नहीं है तो
क्या हो गया अगर आपका बच्चा सरकारी स्कूल में है
क्या हो गया अगर किसी ने कुछ गलत बोल दिया
क्या हो गया अगर जिम नहीं जा सकते
क्या हो गया अगर बड़े होटल में खाना नहीं खा सकते
क्या हो गया अगर ब्रांडेड कपड़े नहीं पहन सकते
क्या हो गया अगर महंगी घड़ी नहीं है तो
क्या हो गया अगर एक कमरे के छोटे से फ्लैट में रहते हो
क्या हो गया अगर बहन बेटी की शादी गरीब घर में हुई है
क्या हो गया अगर मां बाप का इलाज सरकारी अस्पताल में चल रहा है

इत्यादि, इत्यादि....

अपने आप पर यकीन रखो, मेहनत करो, डरो नहीं और इस खूबसूरत ज़िन्दगी से घबराकर गलती से भी आत्महत्या की कोशिश मत करना। अंग्रेजी में एक कहावत है:

It's better to have 500 dollars in a 10 dollars purse rather than 10 dollars in a 500 dollars purse.

मैं आज की युवा पीढ़ी के बिल्कुल खिलाफ नहीं हूं क्यूंकि मैं जानता हूं कि ये लोग ही कल का भविष्य है।

दोस्तों - खुद पर विश्वास करना सीखो। क्रोध, अहंकार, लोभ, दूसरों से अपनी तुलना, ये सब बर्बादी का कारण है। धैर्य रखना बहुत जरुरी है। घृणा और इर्ष्या से दूर रहो। दूसरों में कमिया मत निकालो, उनकी गलतियों से खुद को सुधारना सीखो। सबका आदर करना सीखो। मदद करना सीखो। डरपोक मत बनो, साहसी बनकर सामना करो। Positive Mindset रखो। सबका अच्छा सोचो। दूसरों से प्रेम करना सीखो। आप लोग Abraham Lincoln, JK Rowling, Yuvraj Singh, Amitabh Bachchan, Milkha Singh को पढ़ सकते है जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत परेशानियों का बड़ी खूबसूरती के साथ सामना किया।

सीखना है तो उन गरीब मजदूरों से सीखों जिनकी पूरी ज़िन्दगी दिक्कतों और परेशानियों से भरी पड़ी है। फिर भी वो लोग भुखमरी, अपनी लाचारी में खुश है और किसी भी हालत में Suicide नहीं करते।

कुछ सीखना है तो अपने जीवन में एक चक्कर blind school, orphanage, school of children with special needs, पागलखाने का जरूर लगाना। ये लोग भी आत्महत्या जैसा पाप नहीं करते। हजारो किलो मीटर पैदल चलने वालों ने आत्महत्या नहीं करी। 

एक बार फिर साबित हो गया कि जिंदगी में खूबसूरती, धनदौलत, सफलता, चकाचौंध ही सबकुछ नहीं होती, मानसिक शांति और जीवन में ठहराव होना जरूरी है, अगर मन में शांति ना हो तो आप हजारों की भीड़ में रहकर भी तन्हा हो सकते हैं और अगर मन शांत है तो तन्हा रहकर भी आपको अकेलापन महसूस नहीं हो सकता, इतिहास गवाह है कि ज्यादातर खुदकुशी मानसिक उथलपुथल के कारण ही की जाती हैं, गरीबों और अनपढ़ों से ज्यादा आत्महत्या के मामले पढे लिखे और बाहर से सफल दिखने वाले लोग ही करते हैं। अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों का ख्याल रखिये, पता नहीं कितने हंसते चेहरे अपने अंदर आंसुओं का समंदर लिए आप के साथ ही घूम रहे हों। जिंदगी में कभी किसी को दुःख सताये तो 'दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है' वाला गीत गुनगुनाइए और महंगे जूते अगर ना होने का दुःख हो तो एक बार ये भी सोच लीजिए कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके पैर ही नहीं होते।

आत्महत्या करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अगर ऐसा होता तो पूरी दुनिया कबकी खत्म हो चुकी होती। शायद ही कोई गीत बन पाता, बल्ब नहीं बन पाता, ट्यूबलाइट, पंखे, एसी, कूलर, हवाई जहाज नहीं होते, बड़ी बड़ी फैक्टरियां या मिले नहीं होती। सड़के, बिल्डिंगे, घोड़ा गाड़ी कुछ नहीं होता, स्कूल कॉलेज भी नहीं होते, किसान नहीं होता, खेत खलिहान जंगल नहीं होते, सरकार, सरहदें, कुछ नहीं होता। कुछ भी नहीं।

होता तो बस एक शून्य! Full Stop.

क्रान्ति गौरव
(लेखक)







Monday, June 8, 2020

पिताजी आपने मेरे लिये किया ही क्या है?


दिल को छू लेने वाली लघु कहानी। सभी शिक्षकों को समर्पित। 

जितनी बार पढ़ें, रो जरूर देंगे।
  
 पिताजी आपने मेरे लिये किया क्या है?

"अजी सुनते हो? राहुल को कम्पनी में जाकर टिफ़िन दे आओगे क्या?" 

"क्यों आज राहुल टिफ़िन लेकर नहीं गया।?" शरद राव ने पुछा। 

आज राहुल की कम्पनी के चेयरमैन आ रहे हैं, इसलिये राहुल सुबह 7 बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था।"
"ठीक हैं। दे आता हूँ मैं।" 

शरद राव ने हाथ का पेपर रख दिया और वो कपडे बदलने के लिये कमरे में चले गये। पुष्पाबाई ने  राहत की साँस ली। 

शरद राव तैयार हुए मतलब उसके और राहुल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था। 

विवाद भी कैसा ? हमेशा की तरह राहुल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना। 

विषय भी वही! हमारे पिताजी ने हमारे लिये क्या किया? मेरे लिये क्या किया हैं मेरे बाप ने ?

 "माँ! मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बडा बंगला बना लिया। नहीं तो एक ये हमारे पापा   (पिताजी)। अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं।" 

"राहुल, तुझे मालूम हैं कि तुम्हारे पापा  घर में बडे हैं। और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का भी खर्चा उन्होंने ने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट कचेरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियाँ किसने उठाई?"

"क्या उपयोग हुआ उसका? उनके भाई - बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिये जिस भाई ने इतने कष्ट उठाये उसने एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया, तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें ?"

एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आँखें भर आईं। 

क्या बतायें अपने जन्म दिये पुत्र को "बाप ने क्या किया मेरे लिये" पुछ रहा हैं? 

फिर बोली  .... "तुम्हारे पापा  ने अपना कर्तव्य निभाया। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी। "

राहुल मूर्खों जैसी बात करते हुए बोला — "अच्छा वो ठीक हैं। उन्होंने हजारों बच्चों की ट्यूशन्स ली। यदि उनसे फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते।

आजकल के क्लासेस वालों को देखो। इंपोर्टेड गाड़ियों में घुमते हैं।"

"यह तुम सच बोल रहे हो। परन्तु, तुम्हारे पापा ( पिताजी) का तत्व था, *ज्ञान दान का पैसा नहीं लेना।* 

उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई। और कितने पुरस्कार मिलें। उसकी कल्पना हैं तुझे।"

ये सुनते ही राहुल एकदम नाराज हो गया। 

 "क्या चाटना हैं उन पुरस्कारों को? उन पुरस्कारों से घर थोडे ही बनते आयेगा। पडे ही धूल खाते हुए। कोई नहीं पुछता उनको।"

इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहूल ने दरवाजा खोला तो शरदराव खडे थे। 

पापा ने उनका बोलना तो नहीं सुना इस डर से राहुल का चेहरा उतर गया। परन्तु, शरद राव बिना कुछ बोले अन्दर चले गये। और वह वाद वहीं खत्म हो गया। 

 ये था पुष्पाबाई और राहुल का कल का झगड़ा, पर आज .... 
 
शरद राव ने टिफ़िन साईकिल को  अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहूल की कम्पनी के लिये निकल पडे। 

7 किलोमीटर दूर कंपनी तक पहुचते - पहुंचते उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर सिक्युरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया। 

 "राहुल पाटील साहब का टिफ़िन देना हैं। अन्दर जाँऊ क्या?" 

"अभी नहीं सहाब आये हुए है ।" गार्ड बोला। 

"चेयरमैन साहब आये हुए हैं। उनके साथ मिटिंग चल रही हैं। किसी भी क्षण वो मिटिंग खत्म कर आ सकते हैं। तुम बाजू में ही रहिये। चेयरमैन साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।" 

शरद राव थोडी दूरी पर धूप में ही खडे रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी। 

थोडी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था। 

इसलिये शरद राव वहीं एक तप्त पत्थर पर बैठने लगे, तभी गेट की आवाज आई। शायद मिटिंग खत्म हो गई होगी। 
 
चेयरमैन साहेब के पीछे पीछे कई   अधिकारी और उनके साथ राहुल भी बाहर आया।

उसने अपने पिताजी को वहाँ खडे देखा तो मन ही मन नाराज हो गया। 

चेयरमैन साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे तो उनकी नजर शरद राव की ओर उठ गई।

कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खडे रहे। 
 
"वो सामने कौन खडा हैं?" उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पुछा। 

"अपने राहुल सर के पिताजी हैं। उनके लिये खाने का टिफ़िन लेकर आये हैं।" 
गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा। 

"बुलवाइये उनको।"

जो नहीं होना था वह हुआ। 

राहुल के तन से पसीने की धाराऐं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडने लगा। 

गार्ड के आवाज देने पर शरद राव पास आये। 

चेयरमैन साहब आगे बढे और उनके समीप गये। 

"आप पाटील सर हैं ना ? डी. एन. हाई स्कूल में शिक्षक थे।"

"हाँ। आप कैसे पहचानते हो मुझे?" 

कुछ समझने के पहले ही चेयरमैन साहब ने शरदराव के चरण छूये। सभी अधिकारी और राहुल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गये। 

"सर, मैं अतिश अग्रवाल। तुम्हारा विद्यार्थी। आप मुझे घर पर पढ़ाने आते थे।"

" हाँ.. हाँ.. याद आया। बाप रे बहुत बडे व्यक्ति बन गये आप तो ..." 

चेयरमैन हँस दिये। फिर बोले, "सर आप यहाँ धूप में क्या कर रहे हैं। आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे।

सिक्युरिटी तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया?"

गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया। 

वो देखकर शरद राव ही बोले — "उनकी कोई गलती नहीं हैं। आपकी मिटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रूक गया।"

"ओके... ओके...!"

*चेयरमैन साहब ने शरद राव का हाथ अपने हाथ में लिया और उनको अपने आलीशन चेम्बर में ले गये।* 

"बैठिये सर। अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले।

"नहीं। नहीं। वो कुर्सी आपकी हैं।" शरद राव सकपकाते हुए बोले। 

"सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली हैं।
तब पहला हक आपका हैं।"
चेयरमैन साहब ने जबरदस्ती से उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया। 
"आपको मालूम नहीं होगा पवार सर.." 

 जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले, 
"पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान संभालता रहता।"

राहुल और जी. एम. दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे। 

"स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहुचाया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन दिलाया गया। परन्तु मेरा ध्यान कभी पढाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद। दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना। शाम की क्लासेस से बंक मार कर मुवी देखना यही मेरा शगल था। माँ को वो सहन नहीं होता। उस समय पाटिल सर कडे अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। माँ ने उनके पास मुझे पढ़ाने की विनती की। परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी। इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई। 

माँ ने उनसे बहुत विनती की और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिये मुँह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिये तो मना कर दिया। परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये। पहले दिन सर आये। हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा। तुम्हें कहता हूँ राहुल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढ़ने में रूचि जागृत हो गई। तत्पश्चात मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुझाई नहीं देता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे। सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दूसरे नम्बर पर आया। माँ-पिताजी को खुब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडने लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढ़ने लगा था। और दसवीं में मेरीट में आकर मैंने सबको चौंका दिया था।" 

"माय गुडनेस...! पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी?" जनरल मैनेजर ने पुछा।  
         
"मेरे माँ - पिताजी के साथ मैं सर के घर पेढे लेकर गया। पिताजी ने सर को एक लाख रूपये का चेक दिया। सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद हैं। 

सर बोले — "मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लडका ही बुद्धिमान हैं। मैंने सिर्फ़ उसे रास्ता बताया। और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूँ। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं मे पुनः मेरीट में आया। बाद में बी. ई. करने के बाद अमेरिका जाकर एम. एस. किया। और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया। और मैं ही नहीं तो सर ने ऐसे अनेक असंख्य हीरे बनाये हैं। सर आपको कोटि कोटि प्रणाम...!!"
चेयरमैन साहब ने अपनी आँखों में आये अश्रु रूमाल से पोंछे।*

"परन्तु यह बात तो अदभूत ही हैं कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का बाजार भरा पडा होकर भी सर ने एक रूपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाये पर उनमें पढ़ने की रूचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को।" 
शरद राव की ओर देखकर जी. एम ने कहा। 

 "अरे सर! ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों, और मान सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था।" चेयरमैन बोले। 

"मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं।"

ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया।ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा हैं।"

बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला। 

फिर चेयरमैन ने शरद राव से पुछा, - "सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में हैं रहते हैं।"

"उसी पुराने मकान में रहते हैं सर! "
शरदराव के बदले में राहुल ने ही उत्तर दिया। 
    
उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजगी तत्पर चेयरमैन साहब की समझ में आ गई ।

‌"तय रहा फिर। सर आज मैं आपको गुरू दक्षिणा दे रहा हूँ। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं। उसमें का एक थ्री बी. एच. के. का मकान आपके नाम कर रहा हूँ....."
 "क्या.?" 
शरद राव और राहुल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। "नहीं नहीं इतनी बडी गुरू दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे।" शरद राव आग्रहपूर्वक बोले। 

चेयरमैन साहब ने शरदराव के हाथ को अपने हाथ में लिया।  "सर, प्लीज....  ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरू दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं।" 

फिर राहुल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहुल तुम्हारी शादी हो गई क्या?"

‌"नहीं सर, तय हो गई हैं। और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी ने रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की। तो फिर हाॅल भी बुक नहीं किया।" 

चेयरमैन ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे। समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले "अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मेरीज गार्डन का काम हो गया। *"सागर लान्स"* तो मालूम ही होगा!"

"सर वह तो बहूत महंगा हैं..."

"अरे तुझे कहाँ पैसे चुकाने हैं। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिये कुछ भी कर सकते हैं। सर के बस एक आवाज देने की बात हैं।

परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी हैं। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हाॅल ही नहीं तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियाँ ली हैं उसने... वह भी स्वखुशी से । तुम केवल तारीख बताओ और सामान लेकर जाओ। 
"बहुए बहुत धन्यवाद सर।"

राहुल अत्यधिक खुशी से हाथ जोडकर बोला। "धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहुल ! ये उनकी पुण्याई हैं। और मुझे एक वचन दो राहुल ! सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें कोई दुख भी नहीं होने दोगे।

मुझे जब भी मालूम चला कि, तुम उन्हें दुख दे रहे हो तो, न केवल इस कम्पनी से  लात मारकर भगा दुंगा परन्तु पूरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा। ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।"
चेयरमैन साहब कठोर शब्दों में बोले। 

"नहीं सर। मैं वचन देता हूँ, वैसा कुछ भी नहीं होगा।" राहुल हाथ जोडकर बोला। 

शाम को जब राहुल घर आया तब, शरद राव किताब पढ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी।

राहुल ने बैग रखी और शरद राव के पाँव पकडकर बोला — "पापा , मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आज तक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था पापा  आप इतने बडे व्यक्तित्व लिये हो।"

‌शरद राव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

अपना लडका क्यों रो रहा हैं, पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था। परन्तु कुछ अच्छा घटित हुआ हैं।

इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड रहा हैं। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बूंदे गाल पर लुढक आई।

एक विनती - यदि पढकर कोई बात अच्छी लगे तो यह स्नेहीजन को भेजियेगा जरूर ! खाली वक्त में हम कुछ अच्छा भी पढ़ें ।

कृपया अपने पिताजी से कभी यह न कहे कि "आपने मेरे लिये किया ही क्या हैं? जो भी कमाना हो वो स्वयं अर्जित करें। जो शिक्षा और संस्कार उन्होंने तुम्हें दिये हैं वही कमाने के लिए पथप्रदर्शक रहेंगे..

मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः

Thursday, June 4, 2020

गिरता हुआ इंसान, गिरती हुई इंसानियत

केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर खाने की तलाश में निकलती है। उसे अनन्नास ऑफर किया जाता है। वह मनुष्य पर भरोसा करके खा लेती है। वह नहीं जानती थी कि उसे पटाख़ों से भरा अनन्नास खिलाया जा रहा है। पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं। 

मुँह में हुए ज़ख्मों की वजह से वह कुछ खा नहीं पा रही थी। गर्भ के दौरान भूख अधिक लगती है। उसे अपने बच्चे का भी ख़याल रखना था। लेकिन मुँह में ज़ख्म की वजह से वह कुछ खा नहीं पाती है। घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। इसके बाद भी वह किसी भी मनुष्य को नुक़सान नहीं पहुँचाती है, कोई घर नहीं तोड़ती। पानी खोजते हुए वह नदी तक जा पहुँचती है। मुँह में जो आग महसूस हो रही होगी उसे बुझाने का यही उपाय सूझा होगा। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो वे उसे पानी से बाहर लाने की कोशिश करते हैं लेकिन हथिनी को शायद समझ आ गया था कि उसका अंत निकट है। और कुछ घंटों बाद नदी में खड़े-खड़े ही वह दम तोड़ देती है।

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के जिस ऑफिसर के सामने यह घटना घटी उन्होंने दुःख और बेचैनी में इसके बारे में फेसबुक पर लिखा। जिसके बाद यह बात मीडिया में आई। 

पढ़े-लिखे मनुष्यों की सारी मानवीयता क्या सिर्फ मनुष्य के लिए ही हैं? ख़ैर पूरी तरह तो मनुष्यों के लिए भी नहीं। हमारी प्रजाति में तो गर्भवती स्त्री को भी मार देना कोई नई बात नहीं। 

इन पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं। 

वह ख़बर ज़्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेज़न के जंगल जले। इन जंगलों में जाने कितने जीव मरे होंगे। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों ऊँट मार दिए गए, यह कहकर कि वे ज़्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं।

भारत में हाथियों की कुल संख्या 20000 से 25000 के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।

एक ऐसा जानवर जो किसी ज़माने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार याद्दाश्त में सबसे तेज़, शाकाहारी जीव क्या बिगाड़ रहा है हमारा जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं? 

कोरोना ने हम इंसानों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। यह बता दिया है कि हमने प्रकृति के दोहन में हर सीमा लाँघ दी है। लेकिन अब भी हमें अकल नहीं आई। हमारी क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है। 

दुआ है, यह हथिनी इन निकृष्ट मनुष्यों के बीच फिर कभी जन्म ना ले। उसे सद्गति प्राप्त हो 🙏

Monday, June 1, 2020

True Leadership Is Sacrifice, Not Privilege

Anyone is capable of becoming a leader, but not everyone is cut out for leadership. That doesn’t mean they’re less capable of making an important contribution, just that they bring a different set of skills to the table.
 
There’s nothing wrong with being a follower–the world needs them as much as leaders. There’s a balance to everything. The trick is knowing which role you’re best qualified to fill.

Here are some traits that may show you might be more comfortable following than leading:

1. You have to work to control your emotions. The best leaders have emotional intelligence; they may feel things deeply but they’re emotionally strong and stay in charge of their feelings. Followers are more reactive with their emotions, while leaders are more responsive.

2. You like the middle of the road. Successful leaders have strong convictions and are bold in their beliefs, while followers are less committed to ideals. Followers get out of the storm while leaders stand strong against it.

3. You’re set and rigid in your thinking. Leaders may be headstrong and determined, but they also know when to be flexible and agile. Followers are more inclined to stay on the set course come what may.

4. You’re averse to risk. By nature, followers are more cautious than bold. Leaders combine big dreams and action; they leap into situations where both the payoff and the risk are substantial. Followers watch and take notes; they move more slowly.
 
5. You’re not high in self-confidence. Leaders tend to be decisive, opinionated and self-assured. Followers are more likely to see limits in their abilities and put more faith in the judgments of others.

6. You’re not particularly results-oriented. Leaders like to have a definitive plan and a blueprint for getting results–a bridge between goals and accomplishment. Followers like to have clear instructions that allow them to focus more on their individual corner of big picture.

7. You favor a scattershot approach over focus. Successful leaders are all about discipline, focus and getting things done. Followers are more comfortable with distraction–they’re skilled at putting things down and picking them up again later.

8. You’re not communicative. Leaders are often good speakers and patient listeners who enjoy bringing people together and motivating them. Followers tend to be more introspective and less communicative.
 
9. You don’t look too far ahead. Leaders are almost always characterized by a clear vision for the future and sharing that vision with others. Followers either focus on the moment or sign on to a leader’s vision.

10. You’re more about the nuts and bolts than inspiration. An important quality of a leader is to motivate and inspire others. For followers, that kind of thinking doesn’t come naturally at all.

Both leaders and followers can be equally driven by their desire to make a difference. And it’s not a clear distinction–most of have elements of both sides, and one or the other may come to the forefront depending on the situation. You don’t have to be in charge to be influential.

Anger is the punishment we give ourselves for someone else's mistake

 
The best revenge is no revenge. The best revenge is to smile at hatred. To stifle your anger and show them that you can be happy. Because there’s no better strategy than to act calmly and wisely moving forward, with a firm gaze and a peaceful heart, knowing that you do not need to carry that burden.
 
Confucius wisely said that before you embark on a journey of revenge, dig two graves. One for you and one for your adversary. But unfortunately, revenge still seems “attractive”.

“To err is human to forgive divine”.
-Alexander Pope

We used that word, attraction, for a reason. It’s a human behavior, we know that. In fact, something that writers and film producers know well is that revenge fascinates us. We hear that revenge is like medicine: it helps in small doses, but if consumed in high quantities it can kill us.

Edmond Dantès, the Count of Monte Cristo, is a great literary example. He taught us that the best revenge is served cold, unhurried and perfectly calculated. Agatha Christie, meanwhile, brought us into a complex, equally violent plot in “And Then There Were None” to teach us that evil should be properly avenged.

Revenge attracts us and sometimes we even justify it. However, what are the psychological processes behind it?

Most of us at some point in our lives have felt so aggrieved, hurt and offended that the shadow of that bitter, but almost always tempting, figure has gone through our minds: revenge. Our moral compasses deviate a few degrees and we imagine ways we can give them a taste of their own medicine.

Something that should be clear from the beginning and that psychologist Gordon E. Finley — a great expert in criminal behavior — reminds us of, is that revenge has little to do with morality.

Revenge is an impulse; it is the catharsis of rage and hatred. For example, University of Zurich professor Ernst Fehr’s studies have revealed that more than 40% of the decisions that are carried out in the business world have “revenge” on a competitor as their sole objective.

The same thing happens with criminal acts. More than half of them are committed because of accumulated rancor toward someone and by an express desire to carry out revenge. It forces us to assume that good revenge does not exist.

Beyond its results, something more disturbing happens, something more revealing: we become aggressors. We actually perpetuate the moral deficiency of the person who originally hurt us.

It would be easy to say that the best revenge is no revenge because that’s what moral and common sense dictates. Because that’s what the religious, spiritual and philosophical leaders tell us. But now let’s look at it from a purely psychological standpoint.

For example, have you ever wondered what the profile is for people who are very vengeful? 

Poor emotional management.
Little self-knowledge.

The belief that they know what is absolute and universal. They are the law and justice, an example of what every person should be. Seeing everything as black or white. Either you’re with me or you’re not. Things are done right or they are done wrong. Neither forgiving nor forgetting, living chained to the past and resentment. As we see from this psychological and emotional framework, revenge or the desire for revenge has no good side. This impulse, this need, eats you up and does away with good judgment. It completely throws away your chance to become a better person and enjoy your life.

We may be attracted to Edmond Dantès’ kind of comic justice. However, underneath it is nothing but suffering and loneliness. We stick by our conclusion: the best revenge is no revenge. In fact, moving on and showing people that you’re happy is the best revenge of all.

Judgment is a negative frequency, provided it smacks of jealousy.

There are a lot of things that we learn when we grow up. It starts out with learning how to walk and talk. Then we move on to bigger things. We learn how to add and subtract. We learn how to read and write. Pretty soon that adding and subtracting turns into multiplying and dividing. Next thing you know after that we are sitting in calculus class trying to figure out very complex equations.

My point is the human brain is always growing and learning. As we grow up, our interests change. We grow as humans because we are learning and we learn in many different ways. Sometimes we learn in school and sometimes we learn by the mistakes that we make in life. Mistakes are a part of living, but they are also a beautiful part of life. If you don’t make mistakes, you will never learn.

Think back on a time where you may have said something or did something that may have been ignorant, mean, or just weird. Think about the time that you said or did something that if you could go back you would never do again. Every single one of us has those moments. Those moments are moments that we try to bury into the back of our brains and forget that they ever happened, but sometimes it is good to look back because you can see how far you’ve come.

Every person on this earth has done or said something that they regret. In fact, every person on this earth has done or said multiple things that they regret and are not too proud of. This is why it is important not to define people based on the decisions that they have made in the past but on the person that they are now.

I knew a lot of people from high school who seemed as if they were going nowhere in life. However, when they went to college, it was as if something changed. They grew as people. They were no longer the same person that they used to be. They were now smarter, more intelligent and actually had opinions about the world. I could go back to some of the stupid decisions that they made in high school, and judge them for that, but at the same time, they could do the same to me.

If you are the type of person who never forgets what someone has done in the past, you need to look yourself in the mirror and think about all the things you have done too. Why are you the one bringing up somebody’s past? Is it to make you feel better about yourself? And to those of you who are being judged for your past mistakes, you made them. You can’t change them now. You are above the criticism, though. People who try to nail you on what you’ve done in the past are just trying to bring you down, stay up. Own it. “Yes, I did that and it was a bad decision. I’m sorry.” As long as you have learned from those mistakes, they do not define you anymore. No one on this earth is perfect. The most important thing at the end of the day is that you are happy with the person that you are and you never stop learning. Also, if people want to live inside of your past, leave them there, it’s where they belong.

Help others without expecting anything in return.

 A lady worked at a meat distribution factory. One day, when she finished with her work schedule, she went into the meat cold room (Freezer) to inspect something, but in a moment of misfortune, the door closed and she was locked inside with no help in sight.

Although she screamed and knocked with all her might, her cries went unheard as no one could hear her. Most of the workers had already gone, and outside the cold room it’s impossible to hear what was going on inside.

Five hours later, whilst she was at the verge of death, the security guard of the factory eventually opened the door.

She was miraculously saved from dying that day.

When she later asked the security guard how he had come to open the door, which wasn’t his usual work routine.

His explanation: “I’ve been working in this factory for 35 years, hundreds of workers come in and out every day, but you’re one of the few who greet me in the morning and say goodbye to me every night when leaving after work. Many treat me as if I’m invisible.

Today, as you reported for work, like all other days, you greeted me in your simple manner ‘Hello’. But this evening after working hours, I curiously observed that I had not heard your “Bye, see you tomorrow”.

Hence, I decided to check around the factory. I look forward to your ‘hi’ and ‘bye’ every day because they remind me that I am someone.

By not hearing your farewell today, I knew something had happened. That’s why I was searching every where for you.”

Be humble, love and respect those around you. Try to have an impact on people who cross your path every day, you never know what tomorrow will bring.

Cheers!

वो ज़माना कुछ और था

वो ज़माना और था.. कि जब पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर मे होते थे। वो ज़माना और था .. कि जब पड़ोस के घर बेटी...