Monday, July 20, 2020

वो ज़माना कुछ और था


वो ज़माना और था..

कि जब पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर मे होते थे।

वो ज़माना और था ..

कि जब पड़ोस के घर बेटी पीहर आती थी तो सारे मौहल्ले में रौनक होती थी।

कि जब गेंहूँ साफ करना किटी पार्टी सा हुआ करता था,

कि जब ब्याह में मेहमानों को ठहराने के लिए होटल नहीं लिए जाते थे, पड़ोसियों के घर उनके बिस्तर लगाए जाते थे।

वो ज़माना और था..

कि जब छतों पर किसके पापड़ और आलू चिप्स सूख रहें है बताना मुश्किल था।

कि जब हर रोज़ दरवाजे पर लगा लेटर बॉक्स टटोला जाता था।

कि जब डाकिये का अपने घर की तरफ रुख मन मे उत्सुकता भर देता था ।

वो ज़माना और था..

कि जब रिश्तेदारों का आना, घर को त्योहार सा कर जाता था।

कि जब आठ मकान आगे रहने वाली माताजी हर तीसरे दिन तोरई भेज देती थीं, और हमारा बचपन कहता था , कुछ अच्छा नहीं उगा सकती थीं ये।

वो ज़माना और था...

कि जब मौहल्ले के सारे बच्चे हर शाम हमारे घर ॐ जय जगदीश हरे गाते और फिर हम उनके घर णमोकार मंत्र गाते।

कि जब बच्चे के हर जन्मदिन पर महिलाएं बधाईयाँ गाती थीं और बच्चा गले मे फूलों की माला लटकाए अपने को शहंशाह समझता था।

कि जब बुआ और मामा जाते समय जबरन हमारे हाथों में पैसे पकड़ाते थे, और बड़े आपस मे मना करने और देने की बहस में एक दूसरे को अपनी सौगन्ध दिया करते थे।

वो ज़माना और था ...

कि जब शादियों में स्कूल के लिए खरीदे काले नए चमचमाते जूते पहनना किसी शान से कम नहीं हुआ करता था।

कि जब छुट्टियों में हिल स्टेशन नहीं मामा के घर जाया करते थे और अगले साल तक के लिए यादों का पिटारा भर के लाते थे।

कि जब स्कूलों में शिक्षक हमारे गुण नहीं हमारी कमियां बताया करते थे।

वो ज़माना और था..

कि जब शादी के निमंत्रण के साथ पीले चावल आया करते थे।

कि जब बिना हाथ धोये मटकी छूने की इज़ाज़त नहीं थी।

वो ज़माना और था...

कि जब गर्मियों की शामों को छतों पर छिड़काव करना जरूरी हुआ करता था।

कि जब सर्दियों की गुनगुनी धूप में स्वेटर बुने जाते थे और हर सलाई पर नया किस्सा सुनाया जाता था।

कि जब रात में नाख़ून काटना मना था.....जब संध्या समय झाड़ू लगाना बुरा था ।

वो ज़माना और था...

कि जब बच्चे की आँख में काजल और माथे पे नज़र का टीका जरूरी था।

कि जब रातों को दादी नानी की कहानी हुआ करती थी ।

कि जब कजिन नहीं सभी भाई बहन हुआ करते थे ।

वो ज़माना और था...

कि जब डीजे नहीं , ढोलक पर थाप लगा करती थी,

कि जब गले सुरीले होना जरूरी नहीं था, दिल खोल कर बन्ने बन्नी गाये जाते थे।

कि जब शादी में एक दिन का महिला संगीत नहीं होता था आठ दस दिन तक गीत गाये जाते थे।

वो ज़माना और था...

 कि जब बिना AC रेल का लंबा सफर पूड़ी, आलू और अचार के साथ बेहद सुहाना लगता था।*

वो ज़माना और था..

कि जब चंद खट्टे बेरों के स्वाद के आगे कटीली झाड़ियों की चुभन भूल जाए करते थे।

वो ज़माना और था...

कि जब सबके घर अपने लगते थे......बिना घंटी बजाए बेतकल्लुफी से किसी भी पड़ौसी के घर घुस जाया करते थे।

वो ज़माना और था..

कि जब पेड़ों की शाखें हमारा बोझ उठाने को बैचेन हुआ करती थी।

कि जब एक लकड़ी से पहिये को लंबी दूरी तक संतुलित करना विजयी मुस्कान देता था।

कि जब गिल्ली डंडा, चंगा पो, सतोलिया और कंचे दोस्ती के पुल हुआ करते थे।

वो ज़माना और था..

कि जब हम डॉक्टर को दिखाने कम जाते थे डॉक्टर हमारे घर आते थे, डॉक्टर साहब का बैग उठाकर उन्हें छोड़ कर आना तहज़ीब हुआ करती थी ।

कि जब इमली और कैरी खट्टी नहीं मीठी लगा करती थी।

वो ज़माना और था..

कि जब बड़े भाई बहनों के छोटे हुए  कपड़े ख़ज़ाने से लगते थे।

कि जब लू भरी दोपहरी में नंगे पाँव गालियां नापा करते थे।

कि जब कुल्फी वाले की घंटी पर मीलों की दौड़ मंज़ूर थी ।

वो ज़माना और था

कि जब मोबाइल नहीं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, सरिता और कादम्बिनी के साथ दिन फिसलते जाते थे।

कि जब TV नहीं प्रेमचंद के उपन्यास हमें कहानियाँ सुनाते थे।

वो ज़माना और था

कि जब मुल्तानी मिट्टी से बालों को रेशमी बनाया जाता था ।

कि जब दस पैसे की चूरन की गोलियां ज़िंदगी मे नया जायका घोला करती थी ।

कि जब पीतल के बर्तनों में दाल उबाली जाती थी।

कि जब चटनी सिल पर पीसी जाती थी।

वो ज़माना और था,
वो ज़माना वाकई कुछ और था।

Friday, July 10, 2020

विकास दूबे जैसे लोग कभी नहीं मर सकते


जी हां दोस्तों, आपने बिल्कुल सही पढ़ा। इसको आगे पढ़ने से पहले ये सोचो कि इस आदमी ने आपके सामने आपके बाप को या आपके इकलौते बेटे, छोटे भाई को बड़ी बेरहमी से इसने मारा है। इसने आपकी बीवी का या आपकी इकलौती बहन, एक साल की बेटी का सबके सामने बलात्कार करके कत्ल भी किया है। तभी आप इस लेख को समझ पाओगे क्योंकि जिस पर बीती है, वो ही दर्द को समझ सकता है। जब तक गंदी राजनीति और भ्रष्टाचार रहेगा, विकास दूबे जैसा नामी गुंडा हमेशा ज़िंदा रहेगा।

एनकाउंटर करना बहुत आसान मौत है। जेल मे बैठाकर खिलाने, पालने से अच्छा है ये एनकाउंटर, कमबख्त छुपे हुए नाम फिर भी बाहर नही आते। आज एक विकास मरा है, कल मुफ्तखोर अनपढ़ नेताओं से कोई दूसरा विकास पैदा हो जाएगा। संजय दत्त की "वास्तव" तो देखी होगी आपने।

भारत का संविधान और कानून हमें ऐसा करने को नहीं बोलता वरना ऐसे लोगो के दोनों हाथों को सबसे पहले गरम तेल की कढ़ाई में डाल देना चाहिए। उसके बाद उसके दोनों हाथों को काट देना चाहिए। इससे वो लूला हो जाएगा। फिर बारी आती है उसकी आंखों की। उसकी दोनो आंखो में तेजाब डालकर उसको अंधा कर देना चाहिए। इससे वो अंधा हो जाएगा या फिर उसकी दोनो आंखो को अस्पताल में दान भी कर सकते है। एक बात का ध्यान रहें कि शरीर का हर अंग काटने से पहले उसके सभी दांतो और हड्डियों को तोड़ना और काटने के बाद दिमाग में बिजली का करंट देना अति आवश्यक है। 

अब बात करेंगे उसके पैरों की। उसके पैरों के नाखूनों को प्लास से उखाड़ देना चाहिए। उसके बाद उसके पैरों को उबलते हुए पानी में डालने के बाद काट देना चाहिए। इससे वो लंगड़ा हो जाएगा। खून निकलने पर एसिड से स्प्रे करना ना भूलें। लंगड़ा, लूला और अंधा तो कर दिया। अब बहरा और गूंगा करना बाकी है। बहरा करने के लिए उसके दोनों कानों में कील डालकर हथोड़े से मारना चाहिए। दोनो कानों के परदे फटने के बाद वो पक्का बहरा हो जाएगा। उसके बाद दोनो कानों को उखाड़ देना चाहिए। अंत में बारी आती है उसको गूंगा करने की। गूंगा करने के लिए उसकी जुबान को कैंची से या फिर किसी तेज धार वाले औजार से काट देना चाहिए। इससे वो गूंगा ही जाएगा। 

एक बात याद रहे दोस्तों कि उसको खाने और पीने के लिए कुछ भी नहीं देना है। अगर टाइम मिले तो उसकी नाक के नथुनों को सुई धागे से सीलना भी जरूरी होगा। अब आप खुद ही सोचो कि एक गूंगा, लंगड़ा, लूला, अंधा और बहरा व्यक्ति जिसको खाने पीने के लिए कुछ भी ना मिला हो, वो कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है। अगर गलती से जिंदा बच भी जाता है तो उसका लिंग काटकर फांसी पर लटका दो और उसके बाद उसकी अपाहिज लाश को भूखे शेर के सामने डाल दो। ऐसा जबरदस्त और खोफनाक अंतिम संस्कार टीवी पर दिखाना मत भूलना क्यूंकि इससे दूसरा विकास पैदा होने से बच सकता है और हमारा प्यारा भारत एक क्राइम फ्री देश बन सकता है। एनकाउंटर करना बहुत आसान मौत है। एक सेकंड से भी कम का दर्द और छुट्टी। अगर उसको ऐसे तड़पा के मारेंगे जो ऊपर लिखा है तो ये बाकी के गुंडों के लिए भी एक बहुत बड़ा सबक होगा। भारत में ये होना असंभव है क्यूंकि ये एक प्रजातंत्र देश है जहां पर कमजोर, गरीब और भूखी प्रजा की बिल्कुल भी नहीं सुनी जाती। 

ऐसे गंदे लोगों में डर पैदा करना बहुत जरूरी है क्योंकि ये लोग अपने आप को किसी शहंशाह से कम नहीं समझते। इनके ऊपर घटिया राजनेता जो होते है, उनके बल पर ये भाड़े के गुंडे किसी को भी और कुछ भी कर सकते है। ये बात सब जानते है कि वोटों के लिए एक नेता कितना भी नीचे गिर सकता है जैसे कि फिल्मों में एक रोल पाने के लिए या हीरोइन बनने से पहले लड़कियों को बिल्कुल वैश्या की तरह सबके साथ सोना पड़ता है। यहां सिर्फ नेता की ही बात नहीं है बल्कि रिश्वतखोर आईएएस, आईपीएस अधिकारी, पुलिस वाले, वकील, जज और मीडिया सब मिले हुए है। छोटे शहरों, कस्बों और जिलों में तो एक काउंसलर, एमएलए, एमपी भी अपने आप को किसी राजा औरंगजेब से कम नहीं समझता। 

अपनी मूर्ती बनवाने के लिए ये भ्रष्ट नेता लोग गरीब और भोली भाली जनता की मेहनत का करोड़ों रूपया खर्च कर देंगे लेकिन सड़के, पुल, स्कूल, हॉस्पिटल इत्यादि कभी नहीं बनवाएंगे। कोई साला अगर बीच में आयेगा तो उसको विकास दूबे जैसे भाड़े के गुंडों से मरवा भी देंगे। जाति और धर्म के नाम पर लड़वाने वालो सब नेताओं को कुर्सी और पैसा चाहिए। इन निकम्मों के चेहरे पांच सालो में सिर्फ वोट मांगने के दिन ही दिखाई देते है। क्या कभी आपने सुना है कि किसी भी नेता के यहां पर छोटी सी भी चोरी हुई हो। किसी पुलिस वाले की बहन या बेटी का बलात्कार और कत्ल हुआ हो। ये घटिया और कामचोर लोग शपथ लेते हुए तो बहुत बड़ी बड़ी बाते करते है लेकिन बाद में सब भूल जाते है। कोई इनकी पार्टी के लिए फंड दे तो ठीक है वरना ये सत्ता के भूखे भेड़िए अपने बाप को भी पहचानने से मना कर दे।

हमे जरुरत है एक ईमानदार और समझदार भारत की जहां पर चारों तरफ खुशहाली हो। लड़कियां आजाद घूम सके। खुली हवा में सांस ले सके। हर कोई किरन बेदी या अब्दुल कलाम जैसा ईमानदार नहीं हो सकता। हर बार की तरह इस बार भी ये लेख स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल विचार से समाप्त करूंगा।

इत्र से कपड़ो को महकाना कोई बड़ी बात नहीं,
मज़ा तो तब है जब आपके किरदार से खुशबू आये..

जय हिन्द। जय भारत।

Thursday, July 2, 2020

5 Educational Websites For Children



Completing school assignments can be a pretty intimidating task for children, right?! Well, you needn’t worry anymore because I have made a list of few education-based websites that conduct everything from LIVE classes to uploading concept-based videos, that will make it easier for the kids to study. So without wasting any more time let’s check out these websites. 

1. Meritnation - This website is definitely that every school kid swears by and if not, then you’ve gotta check it out! From online tuitions to concept videos, they have it all over here. Plus, they even have solution booklets that let’s you compare your method of solving and verify if the steps are correct. https://www.meritnation.com/

2. Byju’s - Byju’s is known for providing everything from reading materials to conducting live classes that will let you solve your doubts at home. Plus, they provide free counselling that lets you take important decisions regarding your career choices and options. Plus they also offer interactive sessions where you can get your doubts answered. https://byjus.com/

3. Khan Academy - The next one on the list is similar to other platforms that provide you with personalised learning. It’s a great website for children of ages 2 -18 to gain knowledge for FREE. A non-profit organisation, it aims to help and guide students academically so that they are provided with world-class education. https://www.khanacademy.org/

4. Kids Web - This one is for your little munchkins who are at the beginning of their school life. Their studies are equally important as it forms the basis for further learning. From junior cooking classes to nursery rhymes and quizzes, it’s an excellent way to help your ‘jigar ka tukada’ learn important lessons without making it boring. http://www.kidswebindia.com/

5. Scholastic - Scholastic needs absolutely no introduction when it comes to learning. They provide free solution books that can come to your child’s aid while solving difficult questions. Besides, they also have some interesting reads that will enhance their vocabulary and academic books that will help them study properly. https://scholastic.co.in/

Sunday, June 14, 2020

Suicide - आजकल की युवा पीढ़ी की एक दर्दनाक तस्वीर


परेशानियां किसको नहीं होती? सबकी अपनी अपनी मुश्किलें और दिक्कतें है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि कोई आत्महत्या कर ले। 
आज की युवा पीढ़ी शारीरिक तौर पर Six Pack Abs बनाना तो जानती है लेकिन मानसिक तौर पर इतनी कमजोर है कि कोई अगर जरा सी बात भी बोल दे तो ये अपना मानसिक संतुलन खो देते है और आत्महत्या जैसा घिनौना पाप कर बैठते है। अगर कोई बात इनको गलती से भी बुरी लग गई तो ये गोली तक चला सकते है। 

किसी की नौकरी नहीं लग रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी के माता पिता अब इस दुनिया में नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की शादी नहीं हो रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का काम धंधा नहीं चल रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई किसी Subject में या पेपर में फेल हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी लड़के ने किसी लड़की का शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी लड़की ने किसी लड़के का प्रेम का प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

अगर किसी के घर लड़की पैदा हुई है और वो बात उसके घरवालों को पसंद नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का बच्चा अपंग है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई बीमार है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी को लोन नहीं मिल रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी को English बोलनी नहीं आती, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की अपने पड़ोसी से लड़ाई हो गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की अपने रिश्तेदारों से नहीं बनती, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का sales का target पूरा नहीं हो रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बीवी या बच्चा मर गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई विधवा हो गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई बोना है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई हीजडा है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई अनाथ हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई लंगड़ा, लूला, बहरा, गूंगा, अंधा अपाहिज है, तो क्या वो Suicide कर ले।

बॉस ने डांट दिया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया और वो समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच पाया, प्लेन छूट गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की रेल की टिकट बुक नहीं हो रही, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई social media पर लाइक या शेयर या कॉमेंट नही कर रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई किसी को समझ नही पा रहा या उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की ज़मीन किसी ने हड़प ली, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बीवी दूसरे के साथ भाग गई, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का तलाक हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी के पति का किसी दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई मां नहीं बन सकती, बांझ है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की height कम है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई मर्दाना कमजोरी के कारण बाप नहीं बन सकता, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का टेंडर पास नहीं हो रहा, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी का पति शराब पीकर घर आता है और मार पिटाई करता है, तो क्या वो Suicide कर ले।

किसी की बॉडी नहीं बन पा रही है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई रंग का काला है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई कम उम्र में ही गंजा हो गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई पतला नहीं हो पा रहा है, तो क्या वो Suicide कर ले।

कोई इलेक्शन हार गया, तो क्या वो Suicide कर ले।

इत्यादि, इत्यादि....

इस लेख से मेरा मतलब उस युवा पीढ़ी को समझाने से है, जो अपना धैर्य (Patience) खो चुके है। कई बार परिस्थितियां हमारे हक में नहीं होती और हमको उनसे समझौता करना पड़ता है पर आज की पीढ़ी वो समझौता करने को बिल्कुल तैयार नहीं है। इन लोगों में बहुत ज्यादा गुस्सा (anger) भरा हुआ है। अगर इनकी बात नहीं मानी जाए तो ये भड़क जाते है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी बच्चे ने किसी चीज की फरमाइश या ज़िद करी और वो उसको नहीं मिली, तो वो गुस्से में कुछ भी कर सकता है। 

इत्र से कपड़ों को महकाना कोई बड़ी बात नहीं,
मज़ा तब है जब खुशबू आपके किरदार से आए..

मेरा सभी मित्रों से आग्रह है कि स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए। 

जैसा कि मैंने बताया कि आज की युवा पीढ़ी, जो थोड़ी मेहनत तो करना जानती है, पर उनमें धैर्य बिल्कुल भी नहीं है और उनमें बहुत ज्यादा गुस्सा भरा हुआ है। इसको ऐसे समझने की कोशिश करते है। एक शक्स ने किराए पर एक रेस्टोरेंट खोला। इसके लिए उसने manager, वेटर्स, रिसेप्शनिस्ट, chefs, दरबान भी रखे। फल सब्जियां सब कुछ ताज़ा, अच्छे तेल और देसी घी के पकवान, Entry करने पर Free juice लेकिन ग्राहक नहीं आ रहे। तनख्वाह भी सबको देनी है पर पैसा नहीं है। बैंक का लोन भी चुकाना है। इससे वो शक्स डिप्रेशन में आ गया। भूख प्यास नहीं लगती, नींद भी नहीं आती। धीरे धीरे उसने अपना गुस्सा अपने बीवी बच्चो पर उतारना शुरू कर दिया पर उसे चैन नहीं मिला। रेस्तरां का किराए भी भरना था पर काम नहीं चल रहा। ग्राहक आ नहीं रहे तो इसमें बेचारे cook का क्या दोष। उसने गाली गलोच करके गुस्से में cook को निकाल दिया। मालिक सिर्फ नौकरी से ही निकाल सकता है और कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उसका ऐसा बर्ताव देखकर सबने अपनी नौकरी छोड़ दी और वो डिप्रेशन में आ गया। आज के समय में अगर बच्चों पर एक सेकंड के लिए भी खरोंच आ जाए या घर के किसी भी सदस्य को कोई छोटी सी भी दिक्कत होती है तो दिल दहल जाता है। उसने अपने परिवार की परवाह किए बिना आत्महत्या कर ली जिसका बहुत बुरा परिणाम उसके रोते बिलखते माता पिता और बीवी बच्चो को जीवन भर भुगतना पड़ा।

चार कदम चलने पर ही सांस फूलने वाली आज की युवा पीड़ी नशे की आदि हो चुकी है और दूसरों से अपनी तुलना करती है। ये बहुत बुरी बात है। उधार के पैसों से महंगी शराब पीकर उल्टी करने में कोई समझदारी नहीं है। रिश्तेदारों या पड़ोसियों को नीचा दिखाने के लिए लोन पर ली गई गाड़ी बहुत ज्यादा महंगी पड़ सकती है। 

ससुर या जेठ देवर के साथ शराब पीने वाली आज की युवा पीढ़ी किसी का भी सम्मान या आदर नहीं करती है। ये भी बहुत बुरी बात है। उनको अपनी पढ़ाई, अपनी अमीरी, अपने रूतबे, अपनी Power, अपनी Position, अपनी झूठी शान और शौकत का बहुत गुमान है। जो पढ़ा लिखा बेवकूफ इंसान अपने बड़े भाई या बाप की उम्र के मुलाजिम को गंदी गाली दे सकता है, वो किसी भी हद तक गिर सकता है। घमंडी कोयल की कहानी सुनी होगी आपने।

एक बस मैं ही समझदार हूं, बाकी सब नादान
इस भ्रम में घूम रहा है, आजकल हर इंसान

हर किसी से बदतमीजी से बात करने वाली आजकल की युवा पीढ़ी किसी की भी मदद नहीं करती है या करना ही नहीं चाहती है। ये बहुत बुरी बात है। इन लोगों को सिर्फ अपना फायदा निकालना आता है। ढोंग, दिखावा करना इनको बहुत अच्छा लगता है। अगर सामने वाले से कुछ फायदा हो रहा हो तो ठीक है वरना ये उनका फोन तक भी उठाना पसंद नहीं करते। मेसेज पर reply करना तो बहुत दूर की बात है। ये भी हो सकता है कि ये सब उनको अपने मां बाप से विरासत में मिला हो या फिर समय को देखते हुए परिस्थितियां अनुकूल ना हो। ये लोग "मैं" (EGO) में जीना ज्यादा पसंद करते है।

सुख मेरा कम्बख्त कांच का था..
ना जाने कितनों को चुभ गया..

बर्गर पिज्जा खाने वाली आज की युवा पीढ़ी हर किसी को घृणा और इर्ष्या की नजरों से देखती है। ये बहुत बुरी बात है। इन लोगो को ये बात बहुत चुभती है कि सामने वाला खुश कैसे है। उनसे दूसरों कि खुशी बर्दाश्त नहीं होती। एक जलन नाम की गंदगी उनके अंदर हमेशा भरी रहती है। इनको दूसरों की चुगली करने में बहुत मज़ा आता है। कोई इनकी झूठी तारीफ करें तो इनको बहुत अच्छा लगता है और अगर सामने वाले की थोड़ी सी भी बुराई हो जाए तब तो मज़ा ही कुछ और है।

मेरे चाचा MLA है, मेरे पिताजी के पास बहुत ज़मीन है, मेरी साली high court में जज है, मेरे फूफा MP है, मेरा मौसा Police में है, मेरी बुआ यहां की president है, मेरे मामा IAS है। ये सब बकवास भी सुनी होगी आपने।

जो मज़ा अपनी पहचान बनाने में हैं..
वो किसी की परछाई बनने में नहीं हैं..

आज की युवा पीढ़ी को गंदे और अश्लील वीडियो देखना अच्छा लगता है। अपने आप को संतुष्ट करने के लिए ये लोग कैसे कैसे हथकंडे अपनाते है। पूजा पाठ से तो ये लोग कोसो दूर है। डिस्को, पब, बार में जाना, ये अपनी शान समझते है। झूठा ढोंग और दिखावा करना इनकी आदत बन चुकी है। गाली गलौज, नशा करने में और दूसरों को नीचा दिखाने में आज की युवा पीढ़ी सबसे आगे है।

नौकरी या प्रोमोशन के लिए बॉस के साथ मुंह काला करने वाली युवा पीढ़ी अपने खर्चों पर बिल्कुल नियंत्रण नहीं रखती है। सस्ते कपड़े, सस्ते जूते पहनने में इनको बहुत शर्म आती है। महंगे होटलों में खाना नहीं खाएंगे तो ये लोग शायद बीमार पड़ जाएंगे। उच्च स्तर का रहन सहन नहीं दिखाएंगे तो शायद बदनाम हो जाएंगे।

आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया

दूसरों की बहन बेटियों को बहुत ज्यादा गंदी नजरों से देखने वाली युवा पीढ़ी चोरी चकारी, लूटमार, चेन, पर्स, मोबाइल छीनने में भी पीछे नहीं है। झूठा स्टेटस दिखाने में इनको बहुत मज़ा आता है। अपनी औकात से ज्यादा बड़े मकान में रहना समझदारी नहीं है। अगर किराए नही दे सकते तो फिर कोई सस्ती सी जगह ढूंढ लीजिए ना, लेकिन नहीं, बेइज्जती हो जाएगी।

रोटी पर घी और नाम के साथ जी लगाने से स्वाद और इज्जत दोनों बढ़ जाते हैं।

ये बात आजकल की युवा पीढ़ी, जो मां बहन की गाली देना बड़ा पुण्य का काम समझती है, उनको ये बात समझ में कहां से आएगी। कोई बड़ा हो या छोटा, इनको तो हर किसी से तू, तबाड, तुम बोलने में ही आनंद आता है। आप बोलने में इनकी इज्जत जो कम हो जाती है।

क्रेडिट कार्ड को ही अपना सब कुछ मान लेने वाली आजकल की युवा पीढ़ी को महंगे शौक रखना बहुत अच्छा लगता है। बड़ी गाड़ी के लिए ड्राइवर भी रखेंगे। खाना बनाने के लिए Chef भी होना जरूरी है। खुद का काम करना इनके लिए Mount Everest पर चढ़ने जैसा है। बगीचे के लिए माली का भी होना बहुत ज़रूरी है जो आते जाते सलाम भी ठोकेगा ताकि मेहमानों को लगे कि क्या ठाठ बाट है। पश्चिमी सभ्यता के ये गुलाम लोग हाथी खरीद तो लेते है पर कमबख्त पाल नहीं पाते और अंत में आत्महत्या कर लेते है।

क्या हो गया अगर महंगा फोन नहीं है तो
क्या हो गया अगर गाड़ी नहीं है तो
क्या हो गया अगर आपका बच्चा सरकारी स्कूल में है
क्या हो गया अगर किसी ने कुछ गलत बोल दिया
क्या हो गया अगर जिम नहीं जा सकते
क्या हो गया अगर बड़े होटल में खाना नहीं खा सकते
क्या हो गया अगर ब्रांडेड कपड़े नहीं पहन सकते
क्या हो गया अगर महंगी घड़ी नहीं है तो
क्या हो गया अगर एक कमरे के छोटे से फ्लैट में रहते हो
क्या हो गया अगर बहन बेटी की शादी गरीब घर में हुई है
क्या हो गया अगर मां बाप का इलाज सरकारी अस्पताल में चल रहा है

इत्यादि, इत्यादि....

अपने आप पर यकीन रखो, मेहनत करो, डरो नहीं और इस खूबसूरत ज़िन्दगी से घबराकर गलती से भी आत्महत्या की कोशिश मत करना। अंग्रेजी में एक कहावत है:

It's better to have 500 dollars in a 10 dollars purse rather than 10 dollars in a 500 dollars purse.

मैं आज की युवा पीढ़ी के बिल्कुल खिलाफ नहीं हूं क्यूंकि मैं जानता हूं कि ये लोग ही कल का भविष्य है।

दोस्तों - खुद पर विश्वास करना सीखो। क्रोध, अहंकार, लोभ, दूसरों से अपनी तुलना, ये सब बर्बादी का कारण है। धैर्य रखना बहुत जरुरी है। घृणा और इर्ष्या से दूर रहो। दूसरों में कमिया मत निकालो, उनकी गलतियों से खुद को सुधारना सीखो। सबका आदर करना सीखो। मदद करना सीखो। डरपोक मत बनो, साहसी बनकर सामना करो। Positive Mindset रखो। सबका अच्छा सोचो। दूसरों से प्रेम करना सीखो। आप लोग Abraham Lincoln, JK Rowling, Yuvraj Singh, Amitabh Bachchan, Milkha Singh को पढ़ सकते है जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत परेशानियों का बड़ी खूबसूरती के साथ सामना किया।

सीखना है तो उन गरीब मजदूरों से सीखों जिनकी पूरी ज़िन्दगी दिक्कतों और परेशानियों से भरी पड़ी है। फिर भी वो लोग भुखमरी, अपनी लाचारी में खुश है और किसी भी हालत में Suicide नहीं करते।

कुछ सीखना है तो अपने जीवन में एक चक्कर blind school, orphanage, school of children with special needs, पागलखाने का जरूर लगाना। ये लोग भी आत्महत्या जैसा पाप नहीं करते। हजारो किलो मीटर पैदल चलने वालों ने आत्महत्या नहीं करी। 

एक बार फिर साबित हो गया कि जिंदगी में खूबसूरती, धनदौलत, सफलता, चकाचौंध ही सबकुछ नहीं होती, मानसिक शांति और जीवन में ठहराव होना जरूरी है, अगर मन में शांति ना हो तो आप हजारों की भीड़ में रहकर भी तन्हा हो सकते हैं और अगर मन शांत है तो तन्हा रहकर भी आपको अकेलापन महसूस नहीं हो सकता, इतिहास गवाह है कि ज्यादातर खुदकुशी मानसिक उथलपुथल के कारण ही की जाती हैं, गरीबों और अनपढ़ों से ज्यादा आत्महत्या के मामले पढे लिखे और बाहर से सफल दिखने वाले लोग ही करते हैं। अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों और आसपास के लोगों का ख्याल रखिये, पता नहीं कितने हंसते चेहरे अपने अंदर आंसुओं का समंदर लिए आप के साथ ही घूम रहे हों। जिंदगी में कभी किसी को दुःख सताये तो 'दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है' वाला गीत गुनगुनाइए और महंगे जूते अगर ना होने का दुःख हो तो एक बार ये भी सोच लीजिए कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके पैर ही नहीं होते।

आत्महत्या करना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अगर ऐसा होता तो पूरी दुनिया कबकी खत्म हो चुकी होती। शायद ही कोई गीत बन पाता, बल्ब नहीं बन पाता, ट्यूबलाइट, पंखे, एसी, कूलर, हवाई जहाज नहीं होते, बड़ी बड़ी फैक्टरियां या मिले नहीं होती। सड़के, बिल्डिंगे, घोड़ा गाड़ी कुछ नहीं होता, स्कूल कॉलेज भी नहीं होते, किसान नहीं होता, खेत खलिहान जंगल नहीं होते, सरकार, सरहदें, कुछ नहीं होता। कुछ भी नहीं।

होता तो बस एक शून्य! Full Stop.

क्रान्ति गौरव
(लेखक)







Monday, June 8, 2020

पिताजी आपने मेरे लिये किया ही क्या है?


दिल को छू लेने वाली लघु कहानी। सभी शिक्षकों को समर्पित। 

जितनी बार पढ़ें, रो जरूर देंगे।
  
 पिताजी आपने मेरे लिये किया क्या है?

"अजी सुनते हो? राहुल को कम्पनी में जाकर टिफ़िन दे आओगे क्या?" 

"क्यों आज राहुल टिफ़िन लेकर नहीं गया।?" शरद राव ने पुछा। 

आज राहुल की कम्पनी के चेयरमैन आ रहे हैं, इसलिये राहुल सुबह 7 बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था।"
"ठीक हैं। दे आता हूँ मैं।" 

शरद राव ने हाथ का पेपर रख दिया और वो कपडे बदलने के लिये कमरे में चले गये। पुष्पाबाई ने  राहत की साँस ली। 

शरद राव तैयार हुए मतलब उसके और राहुल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था। 

विवाद भी कैसा ? हमेशा की तरह राहुल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना। 

विषय भी वही! हमारे पिताजी ने हमारे लिये क्या किया? मेरे लिये क्या किया हैं मेरे बाप ने ?

 "माँ! मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बडा बंगला बना लिया। नहीं तो एक ये हमारे पापा   (पिताजी)। अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं।" 

"राहुल, तुझे मालूम हैं कि तुम्हारे पापा  घर में बडे हैं। और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का भी खर्चा उन्होंने ने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट कचेरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियाँ किसने उठाई?"

"क्या उपयोग हुआ उसका? उनके भाई - बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिये जिस भाई ने इतने कष्ट उठाये उसने एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया, तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें ?"

एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आँखें भर आईं। 

क्या बतायें अपने जन्म दिये पुत्र को "बाप ने क्या किया मेरे लिये" पुछ रहा हैं? 

फिर बोली  .... "तुम्हारे पापा  ने अपना कर्तव्य निभाया। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी। "

राहुल मूर्खों जैसी बात करते हुए बोला — "अच्छा वो ठीक हैं। उन्होंने हजारों बच्चों की ट्यूशन्स ली। यदि उनसे फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते।

आजकल के क्लासेस वालों को देखो। इंपोर्टेड गाड़ियों में घुमते हैं।"

"यह तुम सच बोल रहे हो। परन्तु, तुम्हारे पापा ( पिताजी) का तत्व था, *ज्ञान दान का पैसा नहीं लेना।* 

उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई। और कितने पुरस्कार मिलें। उसकी कल्पना हैं तुझे।"

ये सुनते ही राहुल एकदम नाराज हो गया। 

 "क्या चाटना हैं उन पुरस्कारों को? उन पुरस्कारों से घर थोडे ही बनते आयेगा। पडे ही धूल खाते हुए। कोई नहीं पुछता उनको।"

इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहूल ने दरवाजा खोला तो शरदराव खडे थे। 

पापा ने उनका बोलना तो नहीं सुना इस डर से राहुल का चेहरा उतर गया। परन्तु, शरद राव बिना कुछ बोले अन्दर चले गये। और वह वाद वहीं खत्म हो गया। 

 ये था पुष्पाबाई और राहुल का कल का झगड़ा, पर आज .... 
 
शरद राव ने टिफ़िन साईकिल को  अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहूल की कम्पनी के लिये निकल पडे। 

7 किलोमीटर दूर कंपनी तक पहुचते - पहुंचते उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर सिक्युरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया। 

 "राहुल पाटील साहब का टिफ़िन देना हैं। अन्दर जाँऊ क्या?" 

"अभी नहीं सहाब आये हुए है ।" गार्ड बोला। 

"चेयरमैन साहब आये हुए हैं। उनके साथ मिटिंग चल रही हैं। किसी भी क्षण वो मिटिंग खत्म कर आ सकते हैं। तुम बाजू में ही रहिये। चेयरमैन साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।" 

शरद राव थोडी दूरी पर धूप में ही खडे रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी। 

थोडी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था। 

इसलिये शरद राव वहीं एक तप्त पत्थर पर बैठने लगे, तभी गेट की आवाज आई। शायद मिटिंग खत्म हो गई होगी। 
 
चेयरमैन साहेब के पीछे पीछे कई   अधिकारी और उनके साथ राहुल भी बाहर आया।

उसने अपने पिताजी को वहाँ खडे देखा तो मन ही मन नाराज हो गया। 

चेयरमैन साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे तो उनकी नजर शरद राव की ओर उठ गई।

कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खडे रहे। 
 
"वो सामने कौन खडा हैं?" उन्होंने सिक्युरिटी गार्ड से पुछा। 

"अपने राहुल सर के पिताजी हैं। उनके लिये खाने का टिफ़िन लेकर आये हैं।" 
गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा। 

"बुलवाइये उनको।"

जो नहीं होना था वह हुआ। 

राहुल के तन से पसीने की धाराऐं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडने लगा। 

गार्ड के आवाज देने पर शरद राव पास आये। 

चेयरमैन साहब आगे बढे और उनके समीप गये। 

"आप पाटील सर हैं ना ? डी. एन. हाई स्कूल में शिक्षक थे।"

"हाँ। आप कैसे पहचानते हो मुझे?" 

कुछ समझने के पहले ही चेयरमैन साहब ने शरदराव के चरण छूये। सभी अधिकारी और राहुल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गये। 

"सर, मैं अतिश अग्रवाल। तुम्हारा विद्यार्थी। आप मुझे घर पर पढ़ाने आते थे।"

" हाँ.. हाँ.. याद आया। बाप रे बहुत बडे व्यक्ति बन गये आप तो ..." 

चेयरमैन हँस दिये। फिर बोले, "सर आप यहाँ धूप में क्या कर रहे हैं। आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे।

सिक्युरिटी तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया?"

गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया। 

वो देखकर शरद राव ही बोले — "उनकी कोई गलती नहीं हैं। आपकी मिटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रूक गया।"

"ओके... ओके...!"

*चेयरमैन साहब ने शरद राव का हाथ अपने हाथ में लिया और उनको अपने आलीशन चेम्बर में ले गये।* 

"बैठिये सर। अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले।

"नहीं। नहीं। वो कुर्सी आपकी हैं।" शरद राव सकपकाते हुए बोले। 

"सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली हैं।
तब पहला हक आपका हैं।"
चेयरमैन साहब ने जबरदस्ती से उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया। 
"आपको मालूम नहीं होगा पवार सर.." 

 जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले, 
"पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान संभालता रहता।"

राहुल और जी. एम. दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे। 

"स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहुचाया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन दिलाया गया। परन्तु मेरा ध्यान कभी पढाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद। दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना। शाम की क्लासेस से बंक मार कर मुवी देखना यही मेरा शगल था। माँ को वो सहन नहीं होता। उस समय पाटिल सर कडे अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। माँ ने उनके पास मुझे पढ़ाने की विनती की। परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी। इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई। 

माँ ने उनसे बहुत विनती की और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिये मुँह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिये तो मना कर दिया। परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये। पहले दिन सर आये। हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा। तुम्हें कहता हूँ राहुल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढ़ने में रूचि जागृत हो गई। तत्पश्चात मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुझाई नहीं देता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे। सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दूसरे नम्बर पर आया। माँ-पिताजी को खुब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडने लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढ़ने लगा था। और दसवीं में मेरीट में आकर मैंने सबको चौंका दिया था।" 

"माय गुडनेस...! पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी?" जनरल मैनेजर ने पुछा।  
         
"मेरे माँ - पिताजी के साथ मैं सर के घर पेढे लेकर गया। पिताजी ने सर को एक लाख रूपये का चेक दिया। सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद हैं। 

सर बोले — "मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लडका ही बुद्धिमान हैं। मैंने सिर्फ़ उसे रास्ता बताया। और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूँ। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं मे पुनः मेरीट में आया। बाद में बी. ई. करने के बाद अमेरिका जाकर एम. एस. किया। और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया। और मैं ही नहीं तो सर ने ऐसे अनेक असंख्य हीरे बनाये हैं। सर आपको कोटि कोटि प्रणाम...!!"
चेयरमैन साहब ने अपनी आँखों में आये अश्रु रूमाल से पोंछे।*

"परन्तु यह बात तो अदभूत ही हैं कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का बाजार भरा पडा होकर भी सर ने एक रूपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाये पर उनमें पढ़ने की रूचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को।" 
शरद राव की ओर देखकर जी. एम ने कहा। 

 "अरे सर! ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों, और मान सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था।" चेयरमैन बोले। 

"मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं।"

ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया।ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा हैं।"

बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला। 

फिर चेयरमैन ने शरद राव से पुछा, - "सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में हैं रहते हैं।"

"उसी पुराने मकान में रहते हैं सर! "
शरदराव के बदले में राहुल ने ही उत्तर दिया। 
    
उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजगी तत्पर चेयरमैन साहब की समझ में आ गई ।

‌"तय रहा फिर। सर आज मैं आपको गुरू दक्षिणा दे रहा हूँ। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं। उसमें का एक थ्री बी. एच. के. का मकान आपके नाम कर रहा हूँ....."
 "क्या.?" 
शरद राव और राहुल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। "नहीं नहीं इतनी बडी गुरू दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे।" शरद राव आग्रहपूर्वक बोले। 

चेयरमैन साहब ने शरदराव के हाथ को अपने हाथ में लिया।  "सर, प्लीज....  ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरू दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी हैं।" 

फिर राहुल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहुल तुम्हारी शादी हो गई क्या?"

‌"नहीं सर, तय हो गई हैं। और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी ने रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की। तो फिर हाॅल भी बुक नहीं किया।" 

चेयरमैन ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे। समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले "अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मेरीज गार्डन का काम हो गया। *"सागर लान्स"* तो मालूम ही होगा!"

"सर वह तो बहूत महंगा हैं..."

"अरे तुझे कहाँ पैसे चुकाने हैं। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिये कुछ भी कर सकते हैं। सर के बस एक आवाज देने की बात हैं।

परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी हैं। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हाॅल ही नहीं तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियाँ ली हैं उसने... वह भी स्वखुशी से । तुम केवल तारीख बताओ और सामान लेकर जाओ। 
"बहुए बहुत धन्यवाद सर।"

राहुल अत्यधिक खुशी से हाथ जोडकर बोला। "धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहुल ! ये उनकी पुण्याई हैं। और मुझे एक वचन दो राहुल ! सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें कोई दुख भी नहीं होने दोगे।

मुझे जब भी मालूम चला कि, तुम उन्हें दुख दे रहे हो तो, न केवल इस कम्पनी से  लात मारकर भगा दुंगा परन्तु पूरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा। ऐसी व्यवस्था कर दूंगा।"
चेयरमैन साहब कठोर शब्दों में बोले। 

"नहीं सर। मैं वचन देता हूँ, वैसा कुछ भी नहीं होगा।" राहुल हाथ जोडकर बोला। 

शाम को जब राहुल घर आया तब, शरद राव किताब पढ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी।

राहुल ने बैग रखी और शरद राव के पाँव पकडकर बोला — "पापा , मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आज तक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था पापा  आप इतने बडे व्यक्तित्व लिये हो।"

‌शरद राव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

अपना लडका क्यों रो रहा हैं, पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था। परन्तु कुछ अच्छा घटित हुआ हैं।

इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड रहा हैं। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बूंदे गाल पर लुढक आई।

एक विनती - यदि पढकर कोई बात अच्छी लगे तो यह स्नेहीजन को भेजियेगा जरूर ! खाली वक्त में हम कुछ अच्छा भी पढ़ें ।

कृपया अपने पिताजी से कभी यह न कहे कि "आपने मेरे लिये किया ही क्या हैं? जो भी कमाना हो वो स्वयं अर्जित करें। जो शिक्षा और संस्कार उन्होंने तुम्हें दिये हैं वही कमाने के लिए पथप्रदर्शक रहेंगे..

मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः

Thursday, June 4, 2020

गिरता हुआ इंसान, गिरती हुई इंसानियत

केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर खाने की तलाश में निकलती है। उसे अनन्नास ऑफर किया जाता है। वह मनुष्य पर भरोसा करके खा लेती है। वह नहीं जानती थी कि उसे पटाख़ों से भरा अनन्नास खिलाया जा रहा है। पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं। 

मुँह में हुए ज़ख्मों की वजह से वह कुछ खा नहीं पा रही थी। गर्भ के दौरान भूख अधिक लगती है। उसे अपने बच्चे का भी ख़याल रखना था। लेकिन मुँह में ज़ख्म की वजह से वह कुछ खा नहीं पाती है। घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। इसके बाद भी वह किसी भी मनुष्य को नुक़सान नहीं पहुँचाती है, कोई घर नहीं तोड़ती। पानी खोजते हुए वह नदी तक जा पहुँचती है। मुँह में जो आग महसूस हो रही होगी उसे बुझाने का यही उपाय सूझा होगा। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो वे उसे पानी से बाहर लाने की कोशिश करते हैं लेकिन हथिनी को शायद समझ आ गया था कि उसका अंत निकट है। और कुछ घंटों बाद नदी में खड़े-खड़े ही वह दम तोड़ देती है।

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के जिस ऑफिसर के सामने यह घटना घटी उन्होंने दुःख और बेचैनी में इसके बारे में फेसबुक पर लिखा। जिसके बाद यह बात मीडिया में आई। 

पढ़े-लिखे मनुष्यों की सारी मानवीयता क्या सिर्फ मनुष्य के लिए ही हैं? ख़ैर पूरी तरह तो मनुष्यों के लिए भी नहीं। हमारी प्रजाति में तो गर्भवती स्त्री को भी मार देना कोई नई बात नहीं। 

इन पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं। 

वह ख़बर ज़्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेज़न के जंगल जले। इन जंगलों में जाने कितने जीव मरे होंगे। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों ऊँट मार दिए गए, यह कहकर कि वे ज़्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं।

भारत में हाथियों की कुल संख्या 20000 से 25000 के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।

एक ऐसा जानवर जो किसी ज़माने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार याद्दाश्त में सबसे तेज़, शाकाहारी जीव क्या बिगाड़ रहा है हमारा जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं? 

कोरोना ने हम इंसानों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। यह बता दिया है कि हमने प्रकृति के दोहन में हर सीमा लाँघ दी है। लेकिन अब भी हमें अकल नहीं आई। हमारी क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है। 

दुआ है, यह हथिनी इन निकृष्ट मनुष्यों के बीच फिर कभी जन्म ना ले। उसे सद्गति प्राप्त हो 🙏

Monday, June 1, 2020

True Leadership Is Sacrifice, Not Privilege

Anyone is capable of becoming a leader, but not everyone is cut out for leadership. That doesn’t mean they’re less capable of making an important contribution, just that they bring a different set of skills to the table.
 
There’s nothing wrong with being a follower–the world needs them as much as leaders. There’s a balance to everything. The trick is knowing which role you’re best qualified to fill.

Here are some traits that may show you might be more comfortable following than leading:

1. You have to work to control your emotions. The best leaders have emotional intelligence; they may feel things deeply but they’re emotionally strong and stay in charge of their feelings. Followers are more reactive with their emotions, while leaders are more responsive.

2. You like the middle of the road. Successful leaders have strong convictions and are bold in their beliefs, while followers are less committed to ideals. Followers get out of the storm while leaders stand strong against it.

3. You’re set and rigid in your thinking. Leaders may be headstrong and determined, but they also know when to be flexible and agile. Followers are more inclined to stay on the set course come what may.

4. You’re averse to risk. By nature, followers are more cautious than bold. Leaders combine big dreams and action; they leap into situations where both the payoff and the risk are substantial. Followers watch and take notes; they move more slowly.
 
5. You’re not high in self-confidence. Leaders tend to be decisive, opinionated and self-assured. Followers are more likely to see limits in their abilities and put more faith in the judgments of others.

6. You’re not particularly results-oriented. Leaders like to have a definitive plan and a blueprint for getting results–a bridge between goals and accomplishment. Followers like to have clear instructions that allow them to focus more on their individual corner of big picture.

7. You favor a scattershot approach over focus. Successful leaders are all about discipline, focus and getting things done. Followers are more comfortable with distraction–they’re skilled at putting things down and picking them up again later.

8. You’re not communicative. Leaders are often good speakers and patient listeners who enjoy bringing people together and motivating them. Followers tend to be more introspective and less communicative.
 
9. You don’t look too far ahead. Leaders are almost always characterized by a clear vision for the future and sharing that vision with others. Followers either focus on the moment or sign on to a leader’s vision.

10. You’re more about the nuts and bolts than inspiration. An important quality of a leader is to motivate and inspire others. For followers, that kind of thinking doesn’t come naturally at all.

Both leaders and followers can be equally driven by their desire to make a difference. And it’s not a clear distinction–most of have elements of both sides, and one or the other may come to the forefront depending on the situation. You don’t have to be in charge to be influential.

वो ज़माना कुछ और था

वो ज़माना और था.. कि जब पड़ोसियों के आधे बर्तन हमारे घर और हमारे बर्तन उनके घर मे होते थे। वो ज़माना और था .. कि जब पड़ोस के घर बेटी...