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Tuesday, October 9, 2018

जानिए क्या है हिन्दू धर्म में श्राद्ध का महत्व



श्राद्ध क्या है – हिन्दू धर्म में पितरों को भी आदर सम्मान देने का विधान है, क्योंकि उनकी कृपा से हमारे आने वाली पीढ़ी का उन्नती और विकास होता है, इसलिए श्राद्ध पक्ष में बड़े ही विधि विधान से पितरों का श्राद्ध हमारे हिन्दू धर्म में किया जाता है. सनातन संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है. जिसमें तीज-त्योहार, पूजा-विधान, रस्मों का विशेष महत्व है. हिन्दू धर्म से बड़ा इस दुनिया में कोई धर्म नहीं है. हिन्दू धर्म की व्यापकता का विश्व में कोई सानी नहीं हैं. हिन्दू संस्कृति अदभुत है, अतुल्यनिय है. भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का विशेष समय काल श्राद्धपक्ष कहलाता है.


श्राद्ध एक संस्कार है. जिसका वर्णन हमारे अनेकों हिन्दू धर्म ग्रंथों में है. आपको बता दें कि श्राद्धपक्ष को महालय और पितृ पक्ष भी कहते हैं. मूल रुप से श्राद्ध का अर्थ है कि अपने पितरों के प्रति, वं श के प्रति, देवताओं के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करना.


पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों की समयावधि में हिन्दु परिवार के लोग पूर्वजों को भोजन अर्पित करते हैं. उन्हें श्रधांजलि देते हैं. हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में हमारे पूर्वज इस धराधाम पर आते हैं. और अपने हिस्से का अन्न जल किसी न किसी रुप में ग्रहण करते हैं. कहते हैं कि इस तिथि पर सभी पितृगण अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रुप में ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं. ऐसे भी हमारा दायित्व बनता है कि जो पूर्वज अब हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनका आशिष हमें मिलता रहे. इसलिए अपनो की उन्नती और विकास के लिए हमारे पितृदेव श्राद्ध के समय हमें कृतार्थ करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं. समस्त हिन्दू समाज के लोग अपनी श्रद्धा और सामर्थय्नुसार अपने पूर्वजों के लिए श्रद्दापूर्वक श्राद्ध करते हैं.



पुराणों के अनुसार श्राद्ध की व्याख्या


गरुड़ पुराण– ‘पितृ पूजन (श्राद्धकर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं.


मार्कण्डेय पुराण– ‘श्राद्ध कर्म से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं.


कुर्मपुराण– ‘जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता.’


ब्रह्मपुराण– ‘जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता.’


विष्णु पुराण– श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं.


यमस्मृति में कहा गया है कि ‘जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में रहने वाले भगवान विष्णु की ही पूजा करते हैं.’
हिन्दू धर्म में इसका क्या महत्व है


श्राद्ध के महत्व के बारे में हमारे हिन्दू धर्म में बताया गया है कि श्राद्धपक्ष में भोजन करने के बाद जो आचमन किया जाता है और पैर धोया जाता है, उसी से हमारे पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं. समस्त कुटुंब के साथ विधि विधान से किए गए श्राद्ध की तो बात ही क्या कहनी, उससे तो कई गुना फल की प्राप्ती होती है.


इतना ही नहीं हमारे अनेकानेक वेदों, पुराणों, धर्मग्रंथों में श्राद्ध की महत्ता और उसके लाभ के बारे में बताया गया है. एक बात तो स्पस्ट है कि श्राद्ध फल से ना सिर्फ हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि हमें विशेष रुप से हमारे पितर हमारे जीवन सुख शांती के लिए आशीर्वाद भी देते हैं. इसलिए हमें आवश्यक रुप से वर्ष भर में पितरों की मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करना चाहिए और सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण देव को भोजन प्रसाद ग्रहण करवाना चाहिए व पुण्य के भागी बनना चाहिए.
श्राधों में ध्यान रखने के लिए कुछ महतवपूर्ण बातें


श्राद्धपक्ष के दौरान विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि समस्त परिवार प्रसन्नता व विनम्रता के साथ अपने पितरों को भोजन परोसे और ब्राह्मण भोजन करवाने के पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें. श्राद्धकर्म जब तक हो रहा हो तब तक पुरुष सूक्त तथा पवमान सूक्त का जप निरंतर होते रहना चाहिए. ब्राह्मण देव जब भोजन प्रसाद ग्रहण कर लें तब अपने पितृदेव से प्रार्थना करनी चाहिए.


दातारो नोअभिवर्धन्तां वेदा: संततिरेव च॥


श्रद्घा च नो मा व्यगमद् बहु देयं च नोअस्तिवति.


कहने का भाव है कि “पितृगण! हमारे परिवार में दाताओं, वेदों और संतानों की वृद्घि हो, हमारी आप में कभी भी श्रद्धा न घटे, दान देने के लिए हमारे पास बहुत संपत्ति हो.”


इसके बाद ब्राह्मणों की प्रदक्षिणा, दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें विदा करना चाहिए.


श्राद्ध में विशेष रुप से ध्यान रखने योग्य बातें


श्राद्ध के लिए जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उस जल से विधि पूर्वक तर्पण किया जाता. हिन्दू मान्यता है कि इससे हमारे पितर तृप्त होते हैं. श्राद्ध के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर दी जाने वाली तृप्ति पितरों को भी संतुष्ट करती है.


श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना चाहिए,इसे ही पिंडदान कहा जाता है.


स प्रकार से पितृ देवों के लिए श्राद्धपक्ष में नियम-संयम और विधान से, भाव से, श्रद्दा से हमें अपने पितरों की शांति के लिए पूजा पाठ करना चाहिए. जिससे हमारे सिर पर बड़ों आसीर्वाद सदैव बना रहे और हमारे जीवन से रोग शोक का नाश हो जाए और हमारे जीवन में सुख, शांति सम्बृद्धि, उन्नति होती रहे.


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